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गर्मियों की छुट्टियों में 10 वर्षीय ईशा अपनी दादी के घर जाती है, जहां उसे अपने दोस्तों अरुण, दानिश और किटू के साथ जंगल में घूमने का मौका मिलता है।
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जंगल में घूमते हुए, वे एक गुफा पर पहुंचते हैं, जहां ईशा और उसके दोस्त एक रोमांचक लेकिन डरावनी स्थिति का सामना करते हैं।
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गुफा के अंदर, ईशा और उसके दोस्तों को एक बड़ा भालू दिखाई देता है, जिससे डरकर वे भागने की कोशिश करते हैं।
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भागते समय अरुण गिर जाता है और उसकी एड़ी में चोट लग जाती है। हालांकि, दानिश और किटू उसे छोड़कर भाग जाते हैं।
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ईशा अपने डर को भूलकर अरुण की मदद के लिए वापस आती है, और भालू से बचने के लिए एक चतुर योजना बनाती है।
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ईशा और अरुण भालू के सामने मरे होने का नाटक करते हैं, जिससे भालू उन्हें छोड़कर चला जाता है।
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अरुण ईशा की बहादुरी की प्रशंसा करता है और उसे असली दोस्त मानता है, क्योंकि उसने कठिन समय में उसका साथ नहीं छोड़ा।
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कहानी दोस्ती के असली अर्थ और साहस की सुंदरता को दर्शाती है,
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जहां ईशा ने अपने दोस्त को खतरे में नहीं छोड़ा और उसकी जान बचाई।
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