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राजा मानसिंह ने अपनी महारानी के जन्मदिन पर उन्हें एक कीमती हार उपहार में दिया, जो अगली सुबह संदूक से गायब हो गया।
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महारानी ने हार के गायब होने पर राजा को सूचित किया, और राजा ने इसे खोजने की जिम्मेदारी अपने चतुर दरबारी, चतुर सिंह को सौंपी।
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चतुर सिंह ने महल के सभी सेवकों को एक जगह इकट्ठा किया और एक गधे के साथ दरबार में पहुंचे, जिसे उन्होंने जादुई गधा बताया।
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चतुर सिंह ने गधे की पूंछ पर इत्र लगाया और सभी सेवकों से कहा कि वे गधे की पूंछ पकड़कर अपनी निर्दोषता साबित करें।
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सभी सेवकों ने गधे की पूंछ पकड़ी, लेकिन एक सेवक ने डर के मारे ऐसा नहीं किया।
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चतुर सिंह ने सेवकों के हाथों को सूंघा और जिस सेवक के हाथ से इत्र की खुशबू नहीं आ रही थी, उसे चोर बताया।
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राजा ने चतुर सिंह की चतुराई की प्रशंसा की और चोर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। हार वापस मिल गया।
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कहानी की सीख यह है कि बुद्धिमानी और चतुराई से हर समस्या का समाधान संभव है
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और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए।
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