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घने जंगल में धूर्तदास नामक एक गधा रहता था, जो खुद को बहुत बुद्धिमान समझता था, जबकि वास्तव में वह मूर्ख था।
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गर्जन नामक एक शक्तिशाली बाघ भी उसी जंगल में रहता था, जो भोला-भाला था और चालाकी भरी बातें समझ नहीं पाता था।
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एक दिन धूर्तदास ने गर्जन को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि उसकी पीठ पर एक जादुई निशान है जो उसे सबसे शक्तिशाली बनाता है, हालांकि ऐसा कोई निशान नहीं था।
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गर्जन धूर्तदास की बातों में आ गया और उसे लगा कि गधा सचमुच खास है, जिससे धूर्तदास ने अपनी झूठी चालाकी का फायदा उठाया।
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जंगल के जानवरों में लोमड़ी को धूर्तदास की चालाकी पर शक हुआ और उसने सच्चाई का पता लगाने की योजना बनाई।
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लोमड़ी ने धूर्तदास को नदी में जाने के लिए उकसाया ताकि जादुई निशान की सच्चाई सामने आ सके।
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जब धूर्तदास नदी में गया, तो गर्जन को एहसास हुआ कि उसे मूर्ख बनाया गया है और धूर्तदास की कोई जादुई शक्ति नहीं है।
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गर्जन ने धूर्तदास को सख्त सबक सिखाया, जिससे धूर्तदास ने अपनी झूठी चालाकी छोड़ दी और समझ गया कि अहंकार और झूठ का फल हमेशा अपमान होता है।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि ईमानदारी और विनम्रता से ही जीवन में सम्मान मिलता है, न कि झूठी चालाकी से।
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