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यह कहानी एक गीदड़ शौर्य की है, जिसे शेरनी गौरी ने अपने शावकों के साथ पाला था। शौर्य को शेरनी ने अपने दूध से पाला और वह शेरों के बीच बड़ा हुआ।
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शौर्य को कभी एहसास नहीं हुआ कि वह शेरों से अलग है, लेकिन जब उसका सामना एक हाथी से हुआ, तो उसका जन्मजात डर जाग उठा और वह भागने पर मजबूर हो गया।
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शौर्य के शेर भाइयों ने उसे डरपोक कहकर मजाक उड़ाया, जिससे शौर्य को गुस्सा आ गया और वह झगड़ने लगा, यह भूलकर कि वह असल में गीदड़ है।
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शेरनी ने शौर्य को उसके असली स्वभाव और कुल के बारे में बताया, जिससे शौर्य को एहसास हुआ कि वह शेर नहीं बल्कि गीदड़ है।
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शौर्य ने महसूस किया कि शेरों के बीच वह सुरक्षित नहीं है और उसने अपने कुल के गीदड़ों के साथ शामिल होने के लिए गुफा छोड़ दी।
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कहानी यह सिखाती है कि संगत का असर होता है, लेकिन मूल स्वभाव और संस्कार मिटते नहीं। व्यक्ति को अपने मूल को नहीं भूलना चाहिए।
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शौर्य की कहानी यह भी सिखाती है कि व्यक्ति को अपनी सीमाएँ और स्तर याद रखना चाहिए और अहंकार से दूर रहना चाहिए।
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यह कहानी पंचतंत्र की एक नैतिक शिक्षा से भरपूर प्रेरणादायक कहानी है,
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जो कुल और संस्कार के महत्व को उजागर करती है।
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