प्रतिशोध की अग्नि: मेंढक राजा और सर्प का घातक समझौता | अहंकार का पतन

Oct 27, 2025, 03:21 PM

प्रतिशोध की अग्नि

राजा वीरसेन, जो मेंढकों का राजा था, अपने अहंकार और आलोचना सहन न कर पाने के कारण प्रतिशोध की आग में जलने लगा।

प्रतिशोध की अग्नि

जब तारक नामक मेंढक ने राजा की नीतियों की आलोचना की, तो वीरसेन ने उसे सबक सिखाने के लिए एक खतरनाक योजना बनाई।

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राजा वीरसेन ने सर्प द्रोण के साथ एक घातक समझौता किया, जिसमें उसने द्रोण को अपने शत्रुओं को खाने के लिए आमंत्रित किया।

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वीरसेन ने अपने विरोधियों को 'गुप्त विकास परियोजना' के बहाने सर्प के पास भेजना शुरू किया, जहां वे सर्प का शिकार बनते गए।

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धीरे-धीरे, वीरसेन के सभी विरोधी समाप्त हो गए, और उसने सोचा कि अब उसका जलमहल सुरक्षित है।

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जब वीरसेन ने द्रोण से जलमहल छोड़ने के लिए कहा, तो द्रोण ने उसे विश्वासघाती बताते हुए इनकार कर दिया।

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द्रोण ने वीरसेन को भी अपना शिकार बनाया, जिससे वीरसेन का अंत हो गया और द्रोण जलमहल का नया स्वामी बन गया।

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कहानी से यह सीख मिलती है कि प्रतिशोध की भावना आत्मघाती होती है और अहंकार बड़े विनाश का कारण बन सकता है।

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दूसरों को क्षमा करना सबसे बड़ा बल है, जबकि प्रतिशोध की चाहत सबसे बड़ी कमजोरी होती है।