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यह कहानी एक भोले मंदिर के झाड़ू वाले मंगल की है, जो भगवान की भक्ति में लीन रहता है और भगवान से उनकी जगह लेने की विनती करता है ताकि भगवान आराम कर सकें।
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भगवान उसकी भक्ति से प्रभावित होकर अनुमति देते हैं, लेकिन उसे चुप रहने और किसी भी बात में हस्तक्षेप न करने की हिदायत देते हैं।
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मंदिर में एक अमीर आदमी लाला आता है जो प्रार्थना के बाद अपना पर्स भूल जाता है। मंगल को भगवान की योजना पर भरोसा रखते हुए चुप रहना पड़ता है।
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एक गरीब आदमी रामू, जो अपनी गुल्लक का आखिरी सिक्का भगवान को चढ़ाता है, लाला का पर्स पाता है और उसे भगवान की कृपा समझकर ले जाता है।
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एक नौसैनिक विक्रम भी आता है, और उसी समय लाला पुलिस के साथ आकर विक्रम को पर्स चोरी का आरोप लगाता है। मंगल चुप न रह पाता और विक्रम को निर्दोष बताता है।
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भगवान वापस आकर मंगल से पूछते हैं कि उसने उनकी योजना क्यों तोड़ी। भगवान बताते हैं कि अमीर का धन चोरी का था और रामू को पर्स मिलना चाहिए था।
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विक्रम को जेल में रहकर समुद्री आपदा से बचना था, लेकिन मंगल के हस्तक्षेप से भगवान की योजना बदल गई।
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कहानी का मुख्य संदेश यह है कि भगवान की योजना हमेशा हमारे भले के लिए होती है
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और हमें धैर्य और विश्वास के साथ उस पर भरोसा करना चाहिए।
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