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यह कहानी एक छोटे से कस्बे के बच्चे आर्यन की है, जो अपनी मां के साथ बाजार जाता है और मिठाई की दुकान पर टॉफियों का डिब्बा देखता है।
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दुकान के मालिक ने आर्यन को जितनी टॉफियां उसके हाथ में आ सकें, लेने का प्रस्ताव दिया, लेकिन आर्यन ने खुद लेने के बजाय मालिक से देने को कहा।
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आर्यन का तर्क था कि मालिक के बड़े हाथों से उसे अधिक टॉफियां मिलेंगी, जबकि उसके छोटे हाथों से कम ही आ पातीं।
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यह मासूमियत भरी सोच सुनकर दुकान का मालिक और आर्यन की मां हंस पड़े, और मालिक ने अपने हाथों से ढेर सारी टॉफियां आर्यन को दीं।
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रास्ते में, आर्यन की मां ने उससे पूछा कि उसने खुद क्यों नहीं लिया, तो आर्यन ने समझाया कि ईश्वर की मर्जी से हमें हमेशा हमारी सोच से ज्यादा मिलता है।
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आर्यन की मां उसकी इस समझदारी से प्रभावित होकर गर्व और खुशी से भर उठी और उसे गले लगा लिया।
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कहानी का मुख्य संदेश यह है कि हमें ईश्वर की मर्जी पर विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि वे हमेशा हमें हमारी अपेक्षाओं से अधिक देते हैं।
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धैर्य और विश्वास रखने से, ईश्वर हमें खुशियों और समृद्धि से नवाजते हैं,
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जो हमारी उम्मीदों से कहीं अधिक होती हैं।
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