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कहानी "अच्छे लोग, बुरे लोग" सुखपुर नामक एक छोटे से गाँव की है, जो गंगा नदी के किनारे स्थित है और अपनी शांति और हरियाली के लिए प्रसिद्ध है।
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गाँव के बीच में एक पुराना बरगद का पेड़ है, जहाँ लोग जीवन की सीख लेने के लिए इकट्ठा होते हैं। यहाँ के गुरुजी अपनी बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए जाने जाते हैं।
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एक दिन, एक थका हुआ राहगीर गुरुजी से गाँव के लोगों के बारे में पूछता है। गुरुजी उसे बताते हैं कि सुखपुर में वही लोग मिलेंगे जैसे उसके पुराने गाँव में थे, जो उसकी सोच पर निर्भर करता है।
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कुछ घंटे बाद, एक और राहगीर आता है और वही सवाल पूछता है। इस बार, वह अपने पुराने गाँव के लोगों की तारीफ करता है और गुरुजी उसे बताते हैं कि सुखपुर में भी उसे अच्छे लोग मिलेंगे।
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गुरुजी अपने शिष्यों को समझाते हैं कि दुनिया एक दर्पण की तरह है। हम चीजों को वैसे नहीं देखते जैसी वे हैं, बल्कि जैसे हम खुद हैं। हमारा दृष्टिकोण तय करता है कि हम क्या देखते हैं।
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गुरुजी की इस सीख से प्रेरित होकर, गाँव में यह कहानी फैल गई और लोग इसे एक-दूसरे को सुनाने लगे।
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एक नया परिवार गाँव में आता है और गुरुजी की कहानी सुनकर अपने दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास करता है, जिससे वह गाँव वालों का प्रिय बन जाता है।
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सुखपुर में एक मेला आयोजित किया जाता है, जहाँ गुरुजी के शिष्य इस कहानी को नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे दर्शक प्रभावित होते हैं।
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एक छोटी लड़की, गंगा, गुरुजी से सीखती है कि दोस्तों में अच्छाई देखने से वे और प्यारे बन जाते हैं। गुरुजी उसकी प्रशंसा करते हैं।
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कहानी की सीख यह है कि हमारा दृष्टिकोण हमारी दुनिया को आकार देता है। सकारात्मक सोच को अपनाने से हमें हर जगह खुशी और शांति मिलती है।
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