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यह कहानी सर विलियम जोन्स की है, जिन्होंने संस्कृत भाषा सीखने के लिए अपने ज्ञान की भूख और लगन से हर चुनौती का सामना किया।
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सर विलियम जोन्स कलकत्ता हाईकोर्ट के जज थे और उन्हें बचपन से ही नई भाषाएँ सीखने का शौक था। भारत आने पर संस्कृत ने उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया।
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संस्कृत सीखने के लिए उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि उस समय कोई पंडित किसी अंग्रेज को यह भाषा सिखाने के लिए तैयार नहीं था।
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अंततः एक वृद्ध पंडित ने कठोर शर्तों के साथ उन्हें संस्कृत सिखाने का निर्णय लिया, जिसमें शराब और मांस का त्याग और पंडित को पालकी में लाने-ले जाने की व्यवस्था शामिल थी।
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भाषा सीखने के दौरान आने वाली दिक्कतों के बावजूद, सर विलियम जोन्स ने पंडित जी के सामने हार नहीं मानी और अपनी लगन से उन्हें प्रभावित किया।
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एक साल के कठिन परिश्रम के बाद, सर विलियम जोन्स संस्कृत के विद्वान बन गए और उन्होंने कालिदास के प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' का अंग्रेजी में अनुवाद किया।
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इस अनुवाद ने भारतीय साहित्य को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बना दिया और यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी गई।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची लगन और मेहनत से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है
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और ज्ञान का सम्मान करने वाला व्यक्ति ही असली ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
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