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धनंजय नाम का एक बहुरूपिया सूर्य नगर में रहता था, जो अपनी रूप बदलने की कला से लोगों को प्रसन्न करता था और अपनी जीविका चलाता था।
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एक विशाल मेले में धनंजय ने महामंत्री का रूप धारण किया और अपनी कला का प्रदर्शन करके लोगों को चकित कर दिया।
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महामंत्री के रूप में धनंजय ने जनता को प्रभावित किया और उसके बाद उसने अपना असली रूप दिखाया, जिससे लोग हैरान रह गए और उसे मुद्राओं से नवाजा गया।
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एक विद्वान व्यक्ति ने धनंजय को राजा के समक्ष अपनी कला प्रस्तुत करने का सुझाव दिया, जिसे धनंजय ने स्वीकार कर लिया।
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दरबार में धनंजय ने मोहिनी स्त्री का वेश धारण किया और अपनी कला से सभी को प्रभावित किया। राजा ने उसे स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं और रोज नए रूप में दरबार में आने को कहा।
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अगले दिन धनंजय सन्यासी के रूप में दरबार में आया और शास्त्रों की व्याख्या की, जिससे राजा अत्यन्त प्रसन्न हुए। धन के प्रस्ताव को धनंजय ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि वह सन्यासी है।
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फिर धनंजय ने नर्तकी का रूप धारण कर अद्भुत नृत्य प्रस्तुत किया। राजा ने पुनः स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं, लेकिन धनंजय ने कहा कि नर्तकी अधिक धन की अपेक्षा करती है।
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राजा धनंजय के उत्तर से अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसे पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं प्रदान की।
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धनंजय की कला और बुद्धिमानी ने सभी को प्रभावित किया।
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