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राजा महेन्द्र के राज्य में हर साल एक बड़ा कला समारोह आयोजित होता था, जिसमें दूर-दूर से कलाकार अपनी कृतियों का प्रदर्शन करते थे।
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इस समारोह में दो सर्वश्रेष्ठ कलाकारों को पुरस्कार दिया जाता था, और उनमें से एक को 'वर्ष का सर्वोत्तम पुरस्कार रत्न पदक' से सम्मानित किया जाता था।
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इस वर्ष, दो कलाकारों की कृतियों का चयन करना निर्णायकों के लिए कठिन चुनौती बन गया क्योंकि दोनों कृतियां अत्यधिक उत्कृष्ट थीं।
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पहले कलाकार ने एक ऐसा चित्र बनाया था जिसमें फल इतने सजीव लग रहे थे कि पक्षी उन्हें असली समझकर चोंच मारने लगे।
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दूसरे कलाकार ने एक ऐसा पर्दा चित्रित किया था जो इतना वास्तविक लग रहा था कि निर्णायक उसे असली समझकर टकरा गए।
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राजा महेन्द्र ने दूसरे कलाकार की कृति को अधिक प्रभावशाली मानते हुए उसे सर्वश्रेष्ठ कलाकार घोषित किया।
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इस निर्णय के बाद, दोनों कलाकारों ने राजा का निर्णय सहर्ष स्वीकार किया और समारोह का समापन हो गया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि कला की उत्कृष्टता केवल दृष्टि को ही नहीं,
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बल्कि गहरे स्तर पर विवेक और संवेदनाओं को भी प्रभावित करती है।
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