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यह कहानी शंकर की है, जो अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए ठगों से मिलता है। शंकर के पिता एक मशहूर ठग थे और उनके चार साथियों ने उन्हें धोखा देकर मार डाला था।
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शंकर की मां ने उसे ठगी और बाजीगरी की कला में प्रशिक्षित किया ताकि वह अपने पिता के हत्यारों से बदला ले सके। शंकर अमरावती जाकर ठगों से मिलता है और खुद को उनका भांजा बताता है।
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शंकर अपने साथ दो बंदर और एक जादुई डंडा लेकर जाता है। वह ठगों को अपने जादुई बंदर और डंडे के बारे में बताकर उन्हें बेच देता है।
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शंकर ने ठगों को धोखा देकर बंदर और डंडे की मुँह मांगी कीमत वसूल की। ठगों ने बंदर को संदेशवाहक के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन बंदर जंगल भाग गए।
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ठगों ने अपनी पत्नियों को संदेश न मिलने पर फटकारा और उन्हें जादुई डंडे से होश में लाने की कोशिश की, लेकिन पत्नियां पहले ही मर चुकी थीं।
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शंकर ने ठगों को मूर्ख बनाकर उनसे बदला लिया। ठगों ने शंकर को पकड़कर नदी में फेंका, लेकिन एक नाविक ने उसे बचा लिया।
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शंकर ने ठगों को जादुई बोरे का झांसा देकर उसमें बैठाया और उन्हें नदी में फेंक दिया, जिससे वे डूब गए।
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इस प्रकार शंकर ने अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया और काशीपुर लौटकर अपनी मां को न्याय दिलाया।
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कहानी यह सिखाती है कि धैर्य और चतुराई से बुरे कर्मों की सजा मिलती है और सच्चाई की हमेशा जीत होती है।
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