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महाराजा कृष्णा देव राय को एक विदेशी सौदागर ने सुन्दर बिल्लियां उपहार में दीं, जिसके लिए महाराज ने सौदागर को सौ स्वर्ण मुद्रिकायें भेंट कीं।
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सभी बिल्लियां दरबारियों में बांट दी गईं और उन्हें गाय का दूध प्रचुर मात्रा में देने की हिदायत दी गई।
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एक महीने बाद महाराज ने दरबारियों से बिल्लियों को पेश करने को कहा, जहां तेनाली राम की बिल्ली सबसे स्वस्थ दिखी।
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महाराज ने देखा कि तेनाली राम की बिल्ली ने दूध की कटोरी की तरफ ध्यान नहीं दिया, जो अन्य बिल्लियों के विपरीत था।
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तेनाली राम ने बताया कि उसने बिल्ली की आदत छुड़ाने के लिए उसे खौलता दूध पिलाया, जिससे बिल्ली का मुंह जल गया और उसे दूध से अरुचि हो गई।
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तेनाली राम ने कहा कि उसके घर में बहुत चूहे थे और बिल्ली ने चूहे पकड़कर खाना शुरू कर दिया, जो उसका प्राकृतिक भोजन था।
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इस प्रकार बिल्ली को पौष्टिक भोजन मिला और तेनाली राम का दूध भी बच गया,
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जिससे वह अपने बच्चों को पिला सकते थे।
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महाराज तेनाली राम की इस सूझबूझ से बहुत प्रसन्न हुए और उनके अदभुत समाधान की सराहना की।
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