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रोमिका जंगल के शासक 'राॅकी शेर' हर साल नये साल पर जंगल के सभी प्राणियों को दावत देता और प्रतियोगिताएँ आयोजित करता, जिससे सभी प्राणी खुश रहते और नये साल का बेसब्री से इंतजार करते।
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एक बार नये साल के दिन संत मीन्टू भालू जंगल की सीमा पर आए और उनकी प्रसिद्धि सुनकर राॅकी शेर उनसे मिलने गया और उन्हें उपहार स्वरूप अशर्फियों की थैली भेंट की।
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संत भालू ने शेर को मक्का की रूखी रोटी खाने को दी, जिसे शेर गले से नीचे नहीं उतार सका। इस पर संत ने कहा कि उसी तरह उनकी दी हुई चीज भी संत के गले से नहीं उतर सकती।
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संत भालू के इस कथन से शेर की आँखों में आँसू आ गए और उसने संत से इजाजत लेकर वापस जाने की अनुमति मांगी।
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शेर के जाने पर संत खड़े हो गए, और शेर ने पूछा कि जब वह आया था तो संत खड़े नहीं हुए, लेकिन अब क्यों खड़े हो गए।
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संत ने बताया कि जब शेर आया था, उसके सिर पर अहंकार का भूत था। लेकिन अब वह अहंकार मुक्त हो गया है, इसलिए संत ने उसका सम्मान किया।
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शेर ने स्वीकार किया कि पहले उसके सिर पर अहंकार था, लेकिन अब वह समझ गया है कि प्रजा के शोषण का धन भेंट के योग्य नहीं होता।
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शेर ने प्रण लिया कि वह प्रजा का शोषण नहीं करेगा और धन का सही उपयोग करेगा। संत का यह उपदेश उसके लिए नये साल का तोहफा बन गया।
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शेर ने संत को धन्यवाद दिया और कहा कि वह इस सबक को जीवन भर याद रखेगा और इसे कभी नहीं भूलेगा।
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