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छोटू हाथी ने जंगल में फलों की दुकान खोली थी और वह अपनी ईमानदारी और मेहनत के लिए जाना जाता था। वह हमेशा ताजे और साफ फल बेचता था और खराब फलों को फेंक देता था।
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भूरू भालू छोटू हाथी की दुकान पर आया और चीकू की पेटी खरीदना चाहता था, लेकिन उसके पास केवल तीस रुपये थे। छोटू ने उसे उधार की पेशकश की, लेकिन भूरू ने मना कर दिया और बाकी पैसे शाम तक देने की बात कही।
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चमकी लोमड़ी, जो दूसरे जानवरों को बेवकूफ बनाने के लिए जानी जाती थी, ने भूरू और छोटू की बातचीत सुन ली और एक चाल चली।
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शाम को, चमकी लोमड़ी ने छोटू से झूठ बोला कि भूरू ने उसे बीस रुपये देकर चीकू की पेटी लाने को कहा है। छोटू ने दूसरी पेटी देकर उसे बीस रुपये में चीकू दे दिए।
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चमकी लोमड़ी ने सोचा कि उसने चालाकी से पचास रुपये के चीकू बीस रुपये में ले लिए हैं और घर जाकर बच्चों के साथ चीकू खाने लगी।
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पेटी खोलने पर, उसने देखा कि ऊपर के चीकू के नीचे घास फूस और कंकर भरे हुए थे। एक कागज पर लिखा था कि बीस रुपये में केवल इतने ही चीकू मिलते हैं।
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चमकी को समझ में आ गया कि उसकी चाल नहीं चली और भूरू भालू पहले ही अपने चीकू ले जा चुका था।
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अंत में, चमकी लोमड़ी को अपनी चालाकी का खामियाजा भुगतना पड़ा और उसने महसूस किया
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कि ईमानदारी से काम करने में ही समझदारी है।
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