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विष्णु कॉलेज में पढ़ता था और पढ़ाई में रूचि रखने वाला अपने समूह का एकमात्र सदस्य था, जबकि उसके दोस्त अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहते थे।
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विष्णु के पिता रेलवे में गार्ड थे और विष्णु को कभी-कभी उनके साधारण पेशे के कारण हीन भावना होती थी।
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दुर्भाग्यवश, विष्णु के पिता का हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया, और विष्णु को उनके अंतिम संस्कार की सारी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ा।
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जब विष्णु अस्थि विसर्जन के बाद घर लौट रहा था, एक रिक्शेवाले से उसे पता चला कि उसके पिता रिक्शे वालों के बीच बहुत सम्मानित थे।
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रिक्शेवाले ने बताया कि विष्णु के पिता हमेशा रिक्शे वालों को टॉफी और खाने का सामान देते थे
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और एक बार एक ठंडी रात में उसने एक रिक्शेवाले को अपना स्वेटर दे दिया था।
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यह जानकर विष्णु को अपने पिता की महानता का अहसास हुआ और वह खुद को भाग्यशाली समझने लगा।
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विष्णु ने महसूस किया कि उसके पिता असाधारण व्यक्ति थे और यह जानकर वह अपने आंसू नहीं रोक सका।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी की सादगी और उदारता ही उसे असाधारण बनाती है, न कि उसका पेशा।
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