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अम्मा मोहल्ले की एक विशिष्ट और सम्मानित वृद्ध महिला थीं, जिन्हें सभी बच्चे और महिलाएं आदरपूर्वक "अम्मा" कहकर पुकारते थे। वे अपने बेटे और पुत्रवधु के साथ रहती थीं।
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अम्मा का अधिकांश समय मोहल्ले में लोगों से मिलने-जुलने और अपनी पोती की देखभाल में व्यतीत होता था। उनका दिन चिड़ियों को बाजरा खिलाने और सड़क के कुत्ते लैकी को खाना देने से शुरू होता था।
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अम्मा गाय को भी आटे की लोई अपने हाथों से खिलाती थीं। उनका घर मोहल्ले की महिलाओं के लिए घरेलू नुस्खों और अचार बनाने की विधियों का केंद्र था।
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एक सुबह अम्मा के बिस्तर से नहीं उठने पर उनके पुत्र ने पाया कि अम्मा का निधन हो चुका था। उनके निधन का समाचार पूरे मोहल्ले में फैल गया।
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अम्मा के निधन के बाद, उनके जानवर मित्र जैसे चिड़ियाँ, लैकी और गाय भी उदास हो गए। चिड़ियों का झुंड पार्क में नहीं आया, लैकी ने रात में नहीं भौंका और गाय भी आटे की लोई खाने नहीं आई।
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अम्मा ने कभी भी इन जानवरों को पालतू नहीं बनाया था, लेकिन उनके प्रति विशेष ममता और लगाव था। ये जानवर अम्मा के असाधारण पालतू मित्र थे।
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अम्मा की कहानी यह दर्शाती है कि पशु-पक्षी सच्चे मित्र होते हैं और वे बिना किसी बंधन के भी इंसानों से गहरा लगाव रखते हैं।
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अम्मा की मृत्यु के बाद मोहल्ले में एक खालीपन सा छा गया,
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जो उनके और उनके पालतू मित्रों के बीच के विशेष संबंध को दर्शाता है।
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