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अविनाश स्कूल से उदास मन से घर लौटता है, जिससे उसकी माँ चिंतित हो जाती हैं और उससे उदासी का कारण पूछती हैं।
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अविनाश बताता है कि उसके दोस्त उसे पैसे न लाने के कारण चिढ़ाते हैं, जिससे वह दुखी है।
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दोस्तों के सामने बराबरी दिखाने के लिए, अविनाश अपनी माँ की गुल्लक से चोरी करने लगता है और रोज़ सौ रुपये निकालता है।
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जब स्कूल में बोर्ड की फीस भरने का समय आता है, तो अविनाश की माँ को पता चलता है कि गुल्लक में पैसे कम हैं।
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अविनाश को अपनी गलती का अहसास होता है और वह माँ से क्षमा मांगता है, सच्चाई बताते हुए कि उसने पैसे शान दिखाने के लिए चुराए थे।
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अविनाश के माता-पिता उसे माफ कर देते हैं और पापा उधार लेकर उसकी फीस का इंतजाम करते हैं।
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अविनाश अपने माता-पिता से वादा करता है कि वह अब कभी झूठी शान नहीं दिखाएगा और सच्चाई का सामना निडरता से करेगा।
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यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि झूठी शान के लिए गलत रास्ता अपनाना हानिकारक हो सकता है
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और सच्चाई का महत्व सबसे ऊपर है।
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