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रामू एक होशियार छात्र था, जो हमेशा कक्षा में प्रथम आता था, लेकिन उसे इस बात का दुख था कि उसकी माँ उसे कभी उपहार नहीं दिलाती थी।
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रामू की माँ ने उसे समझाया कि परिश्रम का फल मीठा होता है और ईश्वर स्वयं उसे उपहार देंगे।
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माँ की सीख से प्रेरित होकर रामू ने मेहनत करना जारी रखा और परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त किए।
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परीक्षा के बाद जब रामू घर लौट रहा था, उसने एक बुढ़िया की मदद की जो थकान के कारण अपना टोकरा नहीं उठा पा रही थी।
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बुढ़िया ने रामू को बताया कि उसकी माँ परिश्रम की कमाई से उसे पढ़ाती है और उसे मेहनत का महत्व समझाया।
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रामू ने बुढ़िया की मदद की और जब वह घर पहुंचा, तो उसने देखा कि बुढ़िया गायब हो चुकी थी।
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रामू ने इस घटना को अपनी माँ को बताया, जिसने उसे गले लगाकर कहा कि यही उसका असली उपहार है।
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कहानी का मुख्य नैतिक संदेश यह है कि सच्चे परिश्रम का फल मीठा होता है
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और दूसरों की मदद करना भी एक बड़ा उपहार होता है।
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