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सुन्दरनगर नामक गांव में अधिकतर लोग खेती-बाड़ी करते थे और स्नेहपूर्वक रहते थे। एक दिन लक्ष्मी देवी वहां आईं और वासियों को वरदान देने की बात कही।
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लक्ष्मी देवी के वचन सुनकर किसान पुत्र मुफ्त में धन प्राप्त करने के लिए उत्साहित हो गए, लेकिन धरती मां ने उन्हें परिश्रम का महत्व समझाने की कोशिश की।
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वरदान के दिन, लोग लक्ष्मी मंदिर में जमा हुए और उन्होंने धन की मांग की, जिससे उनके घरों में सोने-चांदी का ढेर लग गया।
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बिना परिश्रम के धन ने लोगों को आलसी बना दिया और वे बुरे कामों में लिप्त हो गए। उन्होंने खेती-बाड़ी छोड़ दी और विलासी जीवन जीने लगे।
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धीरे-धीरे, धन का भंडार समाप्त हो गया और अनाज की कमी के कारण महंगाई बढ़ गई, जिससे गांव में भुखमरी फैल गई।
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धरती मां ने गांव की दुर्दशा देखकर लोगों को फिर से परिश्रम करने की प्रेरणा दी और कहा कि मेहनत की कमाई में ही सच्चा सुख है।
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किसानों की आंखें खुल गईं और उन्होंने फिर से खेती करने का निर्णय लिया, जिससे गांव में धीरे-धीरे खुशहाली लौट आई।
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कहानी का संदेश है कि मेहनत से कमाया हुआ धन ही स्थायी सुख और शांति देता है
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जबकि मुफ्त का धन जीवन को बर्बाद कर सकता है।
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