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दीपू और सोनू एक ही स्कूल में पढ़ते थे। सोनू पोलियो के कारण बैसाखी का सहारा लेता था, जबकि दीपू उसे चिढ़ाता था और उसकी नकल करता था।
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सोनू की मां ने दीपू को समझाया कि किसी की कमजोरी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, लेकिन दीपू ने इसे अनसुना कर दिया।
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पिकनिक के दौरान दीपू ने सोनू की चेतावनी को नजरअंदाज कर ऊंचाई से छलांग लगाई, जिससे उसका पैर टूट गया और उसे बैसाखी की जरूरत पड़ी।
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चोट के बाद, दीपू को सोनू की पीड़ा का एहसास हुआ। सोनू ने दीपू का मनोबल बढ़ाने के लिए उसे कॉमिक्स और पत्रिकाएं दीं और उसका ख्याल रखा।
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दीपू को महसूस हुआ कि दूसरों को चिढ़ाने से उन्हें कितना दर्द होता है।
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उसने तय किया कि वह अब किसी का मजाक नहीं उड़ाएगा।
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कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों की कठिनाइयों को समझना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए।
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सहानुभूति और सहयोग से हम सच्चे दोस्त बन सकते हैं और बेहतर इंसान बन सकते हैं।
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यह कहानी हमें दूसरों के प्रति संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण बनने की प्रेरणा देती है।
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