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विजय सुजानगढ़ में अपने माता-पिता के साथ रहने वाला एक शरारती लड़का था जो पढ़ाई से बचने के लिए बहाने बनाता था।
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स्कूल से भागने और शरारतें करने के कारण विजय के माता-पिता उससे बहुत परेशान थे। विजय ने बीमारी का नाटक किया ताकि उसे पढ़ाई न करनी पड़े।
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डॉक्टर को बुलाया गया जिसने विजय की झूठी बीमारी को समझ लिया। विजय ने दवाइयां नहीं लीं और उन्हें पौधों में डाल दिया।
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डॉक्टर ने विजय को ऑपरेशन का डर दिखाया, जिससे विजय ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और पढ़ाई करने का वादा किया।
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विजय ने डॉक्टर से कहा कि वह अब पढ़ाई करेगा और बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा। उसने डॉक्टर से अपनी योजना को माता-पिता को न बताने की गुजारिश की।
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डॉक्टर ने विजय को उसकी गलती का एहसास होने पर प्रोत्साहित किया और कहा कि अगर वह अच्छे अंक लाएगा तो उसे इनाम मिलेगा।
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विजय की इस स्वीकारोक्ति को उसके माता-पिता ने सुन लिया और उसे गले लगा लिया। विजय को अपनी हरकतों पर शर्मिंदगी महसूस हुई।
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इस कहानी का नैतिक संदेश यह है कि झूठ और शरारतें अंततः पकड़ी जाती हैं, और सच्चाई को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है।
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विजय ने आत्मविश्वास के साथ अपनी गलती सुधारी और बेहतर बनने का निर्णय लिया।
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