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संतोष एक खिलौने बेचने वाला व्यक्ति है, जो अपने नाम के अनुरूप संतोषी और दयालु है। वह एक बच्चे आलोक को बिना पैसे के हरा गुब्बारा दे देता है।
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आलोक की मां संतोष के इस कार्य पर संदेह करती है और उसे गलत समझती है, लेकिन संतोष का मानना है कि बच्चे सबके होते हैं और उनकी मदद करना फर्ज है।
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कुछ दिन बाद, संतोष जंगल में एक बच्चे के रोने की आवाज सुनता है और उसे ढूंढने पर पता चलता है कि वह वही बच्चा आलोक है।
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संतोष बच्चे को सुरक्षित उसके घर वापस लेकर जाता है, जहां सभी लोग उसकी वापसी पर खुश होते हैं।
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बच्चे की मां संतोष से माफी मांगती है और महसूस करती है कि उसने संतोष को गलत समझा था।
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संतोष का कहना है कि बच्चों की मदद करना और उन्हें प्यार देना सबका कर्तव्य है और यह मानवता का कार्य है।
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कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची दया और मानवता का कोई भी कार्य, चाहे वह कितना भी छोटा हो,
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समाज में बड़ा सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
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यह कहानी बच्चों की मदद करने और उन्हें प्यार देने के महत्व को उजागर करती है, जो सभी का फर्ज है।
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