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महाराजा रणजीत सिंह की कहानी एक नैतिकता की गाथा है, जिसमें उनका बड़प्पन और दयालुता प्रकट होती है।
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एक दिन महाराजा अपनी राजधानी विविधा का निरीक्षण करने जा रहे थे, जब अचानक उनके माथे पर पत्थर लग गया और खून बहने लगा।
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सैनिकों ने उस दिशा में दौड़ लगाई, जहाँ से पत्थर फेंका गया था, और एक बुढ़िया को पकड़कर महाराजा के सामने लाया।
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बुढ़िया डर के मारे कांप रही थी और उसने हाथ जोड़कर बताया कि उसका बच्चा तीन दिन से भूखा है, इसलिए उसने फल तोड़ने के लिए पत्थर मारा था।
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महाराजा ने बुढ़िया को क्षमा कर दिया और अपने मंत्री को आदेश दिया कि उसके परिवार के लिए राशन-पानी का इंतजाम किया जाए।
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महाराजा के इस निर्णय से सैनिक और मंत्री हैरान रह गए, क्योंकि उन्होंने सजा देने की बजाय मदद की।
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महाराजा ने समझाया कि जब निर्जीव पेड़ भी पत्थर मारने पर फल देता है,
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तो एक मानव और प्रजा पालक होने के नाते उन्हें दंड कैसे दे सकता है।
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इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि दया और बड़प्पन मानवता के सच्चे गुण होते हैं।
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