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यह कहानी दो भाइयों की है, जिसमें एक गरीब और दूसरा अमीर है। गरीब भाई सर्दियों में लकड़ियाँ लेने जंगल जाता है लेकिन उसके पास घोड़ा नहीं होता, तो वह अपने अमीर भाई से घोड़ा मांगता है।
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अमीर भाई अनिच्छा से घोड़ा दे देता है, लेकिन गरीब भाई घोड़े की साज भूल जाता है। वह घोड़े की दुम से साज को बांधकर घर लौटता है, जिससे घोड़े की दुम अटक जाती है।
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अमीर भाई इस पर गुस्सा होकर गरीब भाई के खिलाफ मुकदमा दायर करता है। अदालत जाते समय एक दुर्घटना में गरीब भाई व्यापारी के स्लेज पर गिर जाता है, जिससे व्यापारी के पिता की मृत्यु हो जाती है।
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अदालत में जज गरीब भाई को देखकर उसके हाथ में कुछ चमकता हुआ देखता है, जिसे वह सोने या चांदी का टुकड़ा समझता है। लालच में आकर जज गरीब के पक्ष में फैसला देता है।
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जज के फैसले के अनुसार, जब तक घोड़े की दुम वापस नहीं आती, घोड़ा गरीब के पास रहेगा। व्यापारी का मामला भी जज गरीब के पक्ष में निपटाता है।
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अमीर भाई घोड़ा वापस पाने के लिए गरीब को 30,000 रुपये देता है, जबकि व्यापारी गरीब को 1 लाख रुपये देकर समझौता करता है।
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अंत में, जज जब गरीब से उसके हाथ में चमकदार वस्तु मांगता है, तो गरीब उसे पत्थर दिखाता है। जज को एहसास होता है कि उसने लालच में आकर सही फैसला किया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि चालाकी और बुद्धिमानी से कठिन परिस्थितियों में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
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सत्य और धैर्य से न्याय और लाभ की प्राप्ति होती है।
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