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एक नगर में दानवीर नामक व्यक्ति रहता था, जो अपने नाम के अनुसार जरूरतमंदों की सहायता करने में अग्रसर था। उसकी उदारता के कारण वह किसानों को उनकी फसल का उचित से अधिक हिस्सा देता था।
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एक दिन दानवीर की मुलाकात एक भिखारी से हुई, जो पढ़ा-लिखा था लेकिन नौकरी न मिलने के कारण भीख मांगने को मजबूर था। दानवीर ने उसे अपनी आढ़त पर काम करने का अवसर दिया।
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युवक ने मेहनत से काम किया और महीने के अंत में महसूस किया कि उसे लाभ का केवल चौथाई हिस्सा मिल रहा है, जबकि उसने सारा काम किया था। उसने दानवीर से सारा मुनाफा अपने पास रखने की मांग की।
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दानवीर ने निराश होकर युवक को सारा मुनाफा रखने दिया लेकिन उसे काम से हटा दिया। इसके बाद युवक फिर से बेरोजगार हुआ और वापस भीख मांगने लगा।
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कहानी का संदेश है कि हमें प्रकृति के संसाधनों के प्रति ईमानदार रहना चाहिए और अपने श्रम का प्रतिकार ही लेना चाहिए। बेईमानी करने पर संसाधनों की कमी हो सकती है और मेहनत करने के अवसर खत्म हो सकते हैं।
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यह प्रेरक कहानी हमें बताती है कि अपनी मेहनत के साथ-साथ हमें कृतज्ञता का भाव भी बनाए रखना चाहिए ताकि हम अपने जीवन में स्थायित्व और सफलता पा सकें।
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दानवीर का उदाहरण हमें उदारता और दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देता है, जबकि युवक का अनुभव हमें ईमानदारी और संतोष के महत्व को समझाता है।
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इस कहानी के माध्यम से यह भी सिखाया गया है कि लालच और बेईमानी का परिणाम हमेशा नकारात्मक होता है
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और अंततः हमें नुकसान उठाना पड़ता है।
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