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गीत को चित्रकारी का शौक था, लेकिन उसकी माँ हमेशा उसके चित्रों में कमियाँ निकालती थीं, जबकि उसके दोस्त उसकी बहुत तारीफ करते थे।
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गीत को अपनी माँ की आलोचना बुरी लगती थी, लेकिन उसने अपने दोस्तों को चित्र दिखाए, जो उसकी कला की प्रशंसा करते थे।
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गीत की माँ ने उसे समझाया कि आलोचना उसकी उन्नति के लिए जरूरी है, क्योंकि इससे उसे अपनी गलतियों का पता चलता है और वह सुधार कर सकता है।
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माँ ने बताया कि निंदक या आलोचक को नजदीक रखना चाहिए क्योंकि वे हमारी कमियाँ बताते हैं और हमें बेहतर बनने में मदद करते हैं।
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गीत को यह भी समझाया गया कि उसके दोस्त उसकी बराबरी के हैं और उनकी राय सीमित हो सकती है, जबकि शिक्षक या वरिष्ठ लोग अधिक सटीक आलोचना कर सकते हैं।
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पुराने जमाने में राजा-महाराजा अपनी कमियाँ बताने वालों की इज्जत करते थे और उनकी बातों पर अमल करते थे, जिससे वे आगे बढ़ते थे।
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अंत में, गीत ने समझ लिया कि सच्ची आलोचना से ही सुधार संभव है और उसने अपनी माँ की बात को स्वीकार किया।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि आलोचना को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए
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क्योंकि यह हमारी उन्नति में सहायक होती है।
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