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करीब तीन सौ वर्ष पहले खैरागढ़ में राजा भानशाही का शासन था, जो प्रजा के हित में काम करता था और इसलिए उनकी प्रजा सुखी और प्रसन्न थी।
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खैरागढ़ के समीपवर्ती क्षेत्र कत्यूर का राजा धामशाही एक अत्याचारी और महत्वाकांक्षी राजा था, जिसने खैरागढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया, जिससे राजा भानशाही को पलायन करना पड़ा।
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धामशाही के आक्रमण के बाद खैरागढ़ की प्रजा और सामंत भयभीत और दुखी हो गए थे, और वे बदला लेने की योजना बनाने लगे।
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खैरागढ़ के सामंत भूपू और उनके परिवार के सदस्य भी धामशाही के सैनिकों के हाथों मारे गए, जिससे तीलू रौतेली और उसकी मां को संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ा।
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तीलू रौतेली की मां ने उसे उसके पिता और भाइयों की हत्या की घटना से अपरिचित रखा, लेकिन एक दिन उसका सारा सच सामने आ गया।
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जब तीलू को अपने परिवार के साथ हुए अन्याय का पता चला, तो उसने बदला लेने की प्रतिज्ञा की और खैरागढ़ के परास्त सामंतों और सरदारों के साथ मिलकर युद्ध की तैयारी शुरू की।
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तीलू रौतेली ने अपने साहस और नेतृत्व शक्ति के बल पर खैरागढ़ और अन्य क्षेत्रों को जीत लिया और देवी के मंदिरों की स्थापना की।
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युद्ध के दौरान तीलू ने कई क्षेत्रों में विजय प्राप्त की, लेकिन अंततः एक गद्दार के धोखे से वह शहीद हो गई।
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तीलू रौतेली की वीरता और साहस की गाथाएं आज भी गढ़वाल और पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं, और वह अपने शौर्य के लिए जानी जाती हैं।
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