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राजा कीर्तिवर्मन अपनी बुद्धिमत्ता और दया के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र यशवर्मन का राज्याभिषेक किया गया, जो उम्र में छोटे थे।
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यशवर्मन की बुद्धिमत्ता पर प्रजा और मंत्रियों को संदेह था, लेकिन उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से सही निर्णय लेकर सभी को चौंका दिया।
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एक दिन, एक गरीब व्यक्ति ने महल के दरवाजे पर अपनी पीठ रगड़कर खुजली मिटाई। राजा ने उसकी स्थिति पर दया कर उसे अच्छे कपड़े और एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ दीं।
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अगले दिन, एक और व्यक्ति ने महल के दरवाजे पर वही हरकत की, लेकिन राजा ने उसे 50 कोड़े मारने का आदेश दिया।
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इस अलग व्यवहार से महल के लोग चकित थे और राजा के निर्णय पर सवाल उठाने लगे।
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राजा यशवर्मन ने स्पष्ट किया कि पहले व्यक्ति की स्थिति वास्तविक थी, जबकि दूसरे व्यक्ति ने गरीबी का नाटक किया था।
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दूसरे व्यक्ति के पास हीरे की अंगूठी थी, जो उसकी गरीबी के दावे को झूठा साबित कर रही थी।
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राजा की इस समझदारी और न्यायप्रियता ने सभी को प्रभावित किया, और प्रजा को यशवर्मन की नेतृत्व क्षमता पर विश्वास हो गया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि सच्चे न्याय के लिए गहरी समझ और दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है।
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यशवर्मन ने दिखाया कि कैसे असली जरूरतमंदों की पहचान कर उनकी मदद की जा सकती है और धोखेबाजों को सजा दी जा सकती है।
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