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एक जमींदार की मौत के बाद, उसकी दूसरी पत्नी सुनंदा और उसका बेटा अभिषेक को घर से निकाल दिया गया, जबकि पांचों बड़े भाईयों ने उन्हें कोई संपत्ति नहीं दी।
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गांव वालों ने सुनंदा और अभिषेक की मदद की और उन्हें शिव मंदिर में रहने का स्थान दिया। अभिषेक ने खेती और पूजा के माध्यम से अपना जीवन चलाया।
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सुनंदा ने अभिषेक की शादी के लिए एक लड़की प्रियंका को चुना, जो मंदिर में पूजा करने आती थी। अभिषेक ने अपनी मां की पसंद को स्वीकार किया और दोनों की शादी हो गई।
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अभिषेक ने अपने भाइयों को शादी और बेटे के जन्म पर आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने उसे उपेक्षा और तिरस्कार दिखाया।
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अभिषेक को अपने गरीब होने का दुख सताने लगा, लेकिन भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और उसकी इच्छाएं पूछी।
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अभिषेक ने अपने भाइयों जैसा सुखी होने की इच्छा जताई, लेकिन शिव ने बताया कि उनके सुख के पीछे दुख छिपे हैं।
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अंततः अभिषेक ने संतोष के साथ अपनी स्थिति को स्वीकार किया और शिव ने उसे आशीर्वाद दिया कि उसका पुत्र यशस्वी होगा।
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इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि संतोष सबसे बड़ा सुख है
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और भौतिक सुखों के पीछे के दुखों को समझना महत्वपूर्ण है।
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