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रामगढ़ रियासत के राजा समर सेन एक दयालु व्यक्ति थे, जो जंगल में शिकार के दौरान रास्ता भटक गए थे।
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एक युवक ने राजा की प्यास बुझाई और महल का रास्ता दिखाया, जिससे राजा उसके प्रति आभारी हो गए और उसे महल आने का न्योता दिया।
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युवक ने अपने गांव में राजा के इनाम के बारे में बताया, लेकिन एक मक्कार व्यक्ति ने राजा को उसके स्वाभिमान पर शक करने के लिए उकसाया।
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दरबार में युवक के पहुंचने पर राजा ने उसके स्वाभिमान की परीक्षा ली और उसे लालची कहकर डांटा, जिससे युवक आहत हुआ।
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युवक ने स्वाभिमान के साथ राजा को जवाब दिया कि उसने सेवा इनाम के लालच में नहीं की थी और इनाम लेने से इंकार कर दिया।
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राजा ने युवक के स्वाभिमान की पुष्टि की और महसूस किया कि युवक ने गरीबी में रहते हुए भी अपने आत्मसम्मान को नहीं खोया।
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अंततः राजा ने युवक को दरबार में एक ऊंचा पद और ढेर सारा इनाम दिया, और उसे आदरपूर्वक विदा किया।
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कहानी स्वाभिमान और आत्मसम्मान की महत्ता को उजागर करती है, यह दिखाते हुए
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कि सच्ची सेवा इनाम के लालच में नहीं की जाती।
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