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महाराजा अकबर एक दिन यमुना नदी के किनारे सैर कर रहे थे और उनके साथ उनके दरबार के चतुर मंत्री बीरबल भी थे।
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सैर के दौरान, अकबर ने एक ऊंट को देखा और बीरबल से पूछा कि ऊंट की गर्दन क्यों मुड़ी होती है।
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बीरबल ने चतुराई से जवाब दिया कि ऊंट की गर्दन इसलिए मुड़ी होती है क्योंकि उसने किसी से वादा करके उसे भुला दिया है।
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अकबर ने बीरबल के उत्तर से अपने एक पुराने वादे को याद किया जो उन्होंने बीरबल से किया था पर पूरा नहीं किया था।
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अपनी गलती का एहसास होते ही, अकबर ने महल लौटकर बीरबल को बुलाया और उन्हें वादा किया हुआ पुरस्कार सौंपा।
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अकबर ने बीरबल से कहा कि अब उनकी गर्दन ऊंट की तरह नहीं मुड़ेगी, जिस पर बीरबल ने उनके न्यायप्रिय होने की प्रशंसा की।
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इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि वादे को समय पर पूरा करना चाहिए वरना यह दूसरों के विश्वास को ठेस पहुंचा सकता है।
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बीरबल की चतुराई और धैर्य ने दिखाया कि कैसे बिना टकराव के अपना अधिकार प्राप्त किया जा सकता है।
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अकबर ने यह सिखाया कि एक सच्चे नेता को अपनी गलतियों को स्वीकार कर उन्हें सुधारने में झिझक नहीं करनी चाहिए।
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यह कहानी अकबर और बीरबल की जोड़ी की महानता को दर्शाती है, जिससे भारतीय इतिहास में उनकी अमरता सिद्ध होती है।
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