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यह कहानी गंगाधर नाम के एक मेंढ़क की है, जो अपने परिवार के साथ एक गहरे कुएं में रहता था और अपने परिवार के लिए भोजन इकट्ठा करने में संघर्ष करता था।
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पड़ोस के कुएं में रहने वाले चालाक मेंढ़क अक्सर गंगाधर के परिवार के भोजन को हड़प लेते थे, जिससे गंगाधर को बहुत परेशानी होती थी।
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गंगाधर ने बदला लेने की योजना बनाई और अपनी समस्या का समाधान करने के लिए प्रियदर्शन नाम के एक सांप से दोस्ती कर ली।
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गंगाधर ने सांप को अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए राजी कर लिया, बदले में उसे हर दिन भोजन का वादा किया।
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धीरे-धीरे सांप ने गंगाधर के विरोधी मेंढ़कों को खा लिया, जिससे गंगाधर को खुशी हुई।
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लेकिन जब कुएं में अन्य मेंढ़क खत्म हो गए, तो सांप ने गंगाधर को भी खाने की सोची।
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गंगाधर की अपनी योजना उसके लिए ही घातक साबित हुई, क्योंकि सांप ने उसे भी निगल लिया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाला खुद उसमें गिर जाता है
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और स्वार्थ तथा लालच का अंत दुखद होता है।
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