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भारतीय कांटेदार पूंछ वाली छिपकली, जिसे वैज्ञानिक भाषा में Saara hardwickii कहा जाता है, भारत की एकमात्र शाकाहारी छिपकली प्रजाति है।
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यह छिपकली मुख्य रूप से भारत के रेगिस्तानी क्षेत्रों जैसे थार रेगिस्तान और कच्छ के रण में पाई जाती है और इसका रंग इसे अपने परिवेश में छुपने में मदद करता है।
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इसकी पहचान इसकी कांटेदार पूंछ से होती है, जो शिकारियों से बचाव में मददगार होती है, और इसका शरीर मजबूत और चपटा होता है जो रेगिस्तान में चलने में सहायक होता है।
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यह छिपकली पौधे, पत्तियाँ, फूल और फल खाती है और अपने आहार से ही नमी प्राप्त करती है, जिससे यह पारिस्थितिकी तंत्र में बीजों के प्रसार में योगदान देती है।
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यह प्रजाति सुबह और शाम को सक्रिय रहती है और दिन की गर्मी से बचने के लिए अपने बिल में छुपकर रहती है, जिसे यह अपने मजबूत पैरों से खोदती है।
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प्रजनन के दौरान, मादा छिपकली रेत में गड्ढा खोदकर 10 से 20 अंडे देती है, जो 60 से 70 दिनों में फूटते हैं।
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यह छिपकली पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जैसे बीजों का फैलाव, खाद्य श्रृंखला में योगदान, और मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि।
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वर्तमान में, यह IUCN रेड लिस्ट में "कम चिंता" की श्रेणी में है, लेकिन इसके आवास के नुकसान, शिकार और जलवायु परिवर्तन के कारण संरक्षण की आवश्यकता है।
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इसके सामाजिक व्यवहार के कारण यह समूहों में रहती है और इसकी कांटेदार पूंछ और रंग इसे शिकारियों से बचाते हैं।
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भारतीय कांटेदार पूंछ वाली छिपकली की विशेषताएं इसे भारत के रेगिस्तानी इलाकों की जैव विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती हैं।
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