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इस कहानी में भगवान बुद्ध ने हिमालय के जंगलों में एक सफेद हाथी के रूप में जन्म लिया, जो बोधिसत्व था और लोगों की मदद करने के लिए समर्पित था।
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सफेद हाथी ने अन्य निर्दयी हाथियों के झुंड से अलग होकर अन्य पशुओं की मदद करने का निश्चय किया और एक छोटे बंदर को उसके दोस्तों द्वारा तंग किए जाने से बचाया।
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हाथी की दया और सहायता के कारण वह हाथियों का राजा बन गया और एक दिन उसने एक वन अधिकारी की मदद की जो जंगल में रास्ता भटक गया था।
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अधिकारी को हाथी की मदद से वाराणसी लौटने में सहायता मिली, लेकिन जब उसने हाथी के दांतों की कीमत जानी, तो उसके मन में लालच आ गया।
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लालची अधिकारी ने हाथी से उसके दांत मांगे, और हाथी ने उसे अपने दांत देकर उसकी मदद की, जिससे अधिकारी ने अपने कर्ज का भुगतान किया।
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अधिकारी का लालच खत्म नहीं हुआ और वह फिर से हाथी के पास गया और और दांत मांगे, जिसे हाथी ने दुखी मन से दे दिया।
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जब अधिकारी ने अपने लालच में हाथी से सब कुछ ले लिया, तो धरती फट गई
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और आग ने उसे घेर लिया, जिससे उसे अपनी लालच की सजा मिली।
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कहानी की सीख है कि कृतघ्न और लालची व्यक्ति को कभी संतोष नहीं होता और उसका अंत दुखद होता है।
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