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कहानी राजा विक्रमादित्य और महर्षि दयानंद की है, जिसमें एक टूटे गमले की वजह से नौकर गोविंद की जान खतरे में पड़ जाती है।
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राजा विक्रमादित्य को फूलों का बहुत शौक था और उनके बगीचे में 25 गमले थे, जिनकी देखभाल गोविंद करता था।
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एक दिन गोविंद से गलती से एक गमला टूट गया, जिससे राजा ने उसे फांसी की सजा सुना दी।
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राजा ने घोषणा की कि जो कोई भी टूटे गमले को ठीक करेगा, उसे सोना और सम्मान मिलेगा, लेकिन कोई इसे ठीक नहीं कर सका।
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महर्षि दयानंद ने राजा को जीवन की नश्वरता का पाठ पढ़ाया और गोविंद की सजा को माफ कराने के लिए चतुराई से सभी गमले तोड़ दिए।
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महर्षि की इस चाल ने राजा को सोचने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने अपनी गलती का एहसास किया।
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राजा ने गोविंद की सजा माफ कर दी और उसे बगीचे का प्रबंधक बना दिया।
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इस घटना के बाद राजा का दृष्टिकोण बदल गया और उन्होंने अपने दरबार में नियम बनाया कि सजा से पहले उसके परिणामों पर विचार किया जाएगा।
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महर्षि दयानंद ने नगर में कुछ दिन रहकर लोगों को जीवन के सच्चे मंत्र सिखाए और राज्य में नई सोच जगाई।
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कहानी का मुख्य संदेश है कि निर्णय लेते समय दया और समझदारी का होना आवश्यक है, जिससे समाज और व्यक्तिगत जीवन बेहतर बनता है।
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