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इस कहानी का शीर्षक "झूठ जब सच जैसा लगे – धोखा न खाएँ" है, जो बताता है कि कैसे बार-बार बोले गए झूठ को सच मानने की गलती होती है।
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कहानी में एक गरीब ब्राह्मण का जिक्र है, जिसे एक परिवार ने भोज के बाद बकरा दान में दिया।
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ब्राह्मण खुशी-खुशी बकरा लेकर घर जा रहा था, जब तीन ठगों ने उसे धोखा देने की योजना बनाई।
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पहले ठग ने ब्राह्मण से कहा कि वह अपने कंधे पर कुत्ता ले जा रहा है, जिससे ब्राह्मण हैरान हो गया।
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दूसरे और तीसरे ठग ने भी वही बात कही, जिससे ब्राह्मण के मन में संदेह उत्पन्न हो गया।
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अंततः ब्राह्मण ने ठगों की बातों में आकर बकरा रास्ते में ही छोड़ दिया।
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ठगों ने ब्राह्मण के जाने के बाद बकरा पकड़ लिया और उसका मांस पकाकर खा लिया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि बार-बार बोले गए झूठ को सच मान लेना गलत है, और हमें अपनी आँखों और दिमाग पर भरोसा करना चाहिए।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि दूसरों की बातों में बिना सोचे-समझे नहीं आना चाहिए।
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इस कहानी के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि हमें अपनी समझदारी का उपयोग करना चाहिए और दूसरों की बातों में आकर धोखा नहीं खाना चाहिए।
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