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अप्पू हाथी और गप्पू बन्दर पक्के दोस्त थे, जो तीन साल से एक ही कक्षा में पढ़ते-पढ़ते ऊब चुके थे। वे पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और अक्सर डांट खाते थे।
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अप्पू और गप्पू के माता-पिता ने उन्हें काम पर लगा दिया। अप्पू ने लकड़ी ढोने का काम शुरू किया, जबकि गप्पू ने राजा शेरसिंह के महल की पहरेदारी की।
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काम से थककर दोनों ने एक योजना बनाई कि वे शहीदों के परिवारों की मदद के लिए धन इकट्ठा करेंगे, लेकिन गप्पू का असली इरादा धन का दुरुपयोग करना था।
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अप्पू को शुरुआत में गप्पू की योजना में संदेह था, लेकिन गप्पू ने उसे मना लिया। उन्होंने जानवरों से धन इकट्ठा करना शुरू किया, यह वादा करते हुए कि यह सैनिक कोष में जाएगा।
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एक हफ्ते में उन्होंने काफी धन इकट्ठा कर लिया और अपने लिए नए कपड़े और मिठाई खरीदने लगे, जिससे जंगल के जानवरों को शक हुआ।
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राजा शेरसिंह ने जासूसों को उनके पीछे लगाया और जल्द ही उनकी चाल का पर्दाफाश हो गया। राजा ने बचा धन सैनिक कोष में जमा करा दिया।
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अप्पू और गप्पू को उनके धोखे की सजा के रूप में कारागार में डाल दिया गया, जहाँ उन्होंने मेहनत का महत्व सीखा।
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सजा पूरी करने के बाद, अप्पू और गप्पू सुधर गए और मेहनत से कमाई करने लगे,
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जिससे उनके माता-पिता भी खुश हुए।
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