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मनोहारी वन में एक बड़ा तालाब था, जिसमें दुर्बुद्धी नामक एक बूढ़ा बगुला रहता था, जो अब मछलियाँ पकड़ने में असमर्थ था।
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पेट भरने के लिए उसने एक चाल चली और उदास होकर तालाब के किनारे खड़ा हो गया, जिससे सुबुद्धी नामक केंकड़े ने उसकी चिंता का कारण पूछा।
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बगुले ने बताया कि मछुआरे जल्द ही तालाब में मछलियाँ पकड़ने आने वाले हैं, जिससे तालाब के सभी प्राणियों पर विपत्ति आने वाली है।
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मछलियाँ घबराकर बगुले से मदद माँगती हैं, और बगुला उन्हें दूसरे तालाब में ले जाने का प्रस्ताव करता है।
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भोली मछलियाँ उसकी बातों में आकर बगुले के साथ जाने लगती हैं, जबकि बगुला उन्हें चट्टान पर ले जाकर खा जाता है।
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कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहता है और किसी को बगुले पर शक नहीं होता।
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एक दिन सुबुद्धी केंकड़ा भी दूसरे तालाब जाने की इच्छा प्रकट करता है, और बगुला उसे ले जाने के लिए तैयार हो जाता है।
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मार्ग में केंकड़े को हड्डियों का ढेर देखकर स्थिति समझ में आ जाती है,
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और वह बगुले की गर्दन कसकर काट देता है, जिससे बगुले की धोखाधड़ी का अंत होता है।
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