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चमन भालू एक ईमानदार और मेहनती मोची था, जो अपने काम के लिए प्रसिद्ध था। उसका बेटा सोनू, जो आलसी था और ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था, काम करने से कतराता था।
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चमन ने अपने बेटे सोनू को जूते-चप्पल का काम सीखने की सलाह दी, लेकिन सोनू ने इसे छोटा काम मानकर ठुकरा दिया और बड़ा काम ढूंढ़ने के लिए घर छोड़ दिया।
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रास्ते में सोनू ने बंदु बंदर की कपड़े की दुकान में नौकरी के लिए पूछा, लेकिन नौकर का काम छोटा मानकर अस्वीकार कर दिया।
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आगे चलकर, सोनू ने गज्जु हाथी के होरे-जवाहरात शोरूम में मैनेजर बनने की इच्छा जताई, लेकिन अपनी कम शैक्षणिक योग्यता के कारण उसे वहां से भगा दिया गया।
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निराश सोनू को चीकू खरगोश ने समझाया कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि मेहनत और लगन से किया गया हर काम महत्वपूर्ण होता है।
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चीकू की बातों से प्रेरित होकर सोनू को एहसास हुआ
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कि उसे किसी भी काम को मेहनत और लगन से करना चाहिए।
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सोनू ने तय किया कि वह अपने घर लौटकर अपने पिता के साथ जूते-चप्पल का काम सीखना शुरू करेगा।
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कहानी का संदेश है कि मेहनत से किया गया हर कार्य बड़ा होता है और कोई काम छोटा नहीं होता।
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