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एक जंगल में हाथियों का एक झुंड रहता था, जिसका सरदार गजराज था। गजराज अपने झुंड का बहुत ख्याल रखता था और सभी हाथी उसकी बहुत इज्जत करते थे।
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जंगल में बारिश न होने के कारण अकाल पड़ा, जिससे नदियाँ और सरोवर सूख गए। भोजन और पानी की कमी के कारण जानवर जंगल छोड़ने लगे।
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गजराज ने हाथियों को अलग-अलग दिशाओं में जाकर भोजन और पानी की खोज करने के लिए कहा। एक हाथी ने सूचना दी कि कुछ दूर एक जंगल है जहाँ पानी और भोजन प्रचुर मात्रा में हैं।
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हाथियों का झुंड नए जंगल में पहुँच गया, जहाँ उन्हें पानी और भोजन मिला। लेकिन वहां खरगोशों की बस्ती में हाथी गुजरने से कई खरगोश घायल या मारे गए।
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खरगोशों ने एक सभा बुलाई और एक चतुर खरगोश ने गजराज के पास जाकर हाथियों के अत्याचार को रोकने का प्रस्ताव दिया।
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चतुर खरगोश ने गजराज को चंद्रमा का दूत बनकर बताया कि चंद्रमा हाथियों के व्यवहार से नाराज़ हैं
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और चेतावनी दी कि यदि हाथी नहीं रुके, तो चंद्रमा उन्हें दंड देंगे।
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गजराज ने खरगोश की बातों पर विश्वास कर लिया और प्रायश्चित करने के लिए अपने हाथियों के साथ जंगल छोड़ने का निर्णय लिया।
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इस प्रकार, चतुर खरगोश की बुद्धिमानी ने खरगोशों को हाथियों से बचा लिया और गजराज को धोखे में डालकर अपनी बस्ती की रक्षा की।
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