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एक सियार जो बेहद आलसी और कामचोर था, अपनी मांद में दिन भर पड़ा रहता था, जिससे उसकी पत्नी परेशान थी और उसे ही बच्चों के लिए खाना लाना पड़ता था।
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सियार की पत्नी ने उसे फटकारते हुए कहा कि या तो वह शिकार करने जाए या फिर वह अपने मायके चली जाएगी, जिससे मजबूर होकर सियार शिकार के लिए तैयार हो गया।
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सियार की पत्नी ने उसे मनुष्यों की बस्ती में न जाने की चेतावनी दी, लेकिन सियार ने ठान लिया कि वह किसी मनुष्य का ही शिकार करेगा।
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बस्ती में घुसते समय सियार ने एक घर के पास एक बच्चे की रोने की आवाज सुनी और उसकी मां उसे धमका रही थी कि वह उसे सियार की मांद में छोड़ आएगी।
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सियार को लगा कि शिकार खुद उसके पास आने वाला है और वह मांद में लौट आया, अपनी पत्नी से शेखी बघारते हुए कहा कि उसने एक मनुष्य का शिकार किया है।
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जब काफी देर हो गई और कोई शिकार नहीं आया, तो सियारनी ने पूछा कि शिकार कहां है। सियार ने अपनी झेंप मिटाने के लिए फिर से बस्ती की ओर रुख किया।
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बस्ती में एक औरत अपने पति से कह रही थी कि बाहर सियार बहुत आते हैं, कहीं वे बच्चे को न उठा लें। आदमी बाहर देखने गया, लेकिन सियार छिप गया।
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सियार को डर था कि अगर वह पकड़ा गया तो मनुष्य उसे नहीं छोड़ेंगे, इसलिए वह भागकर अपनी मांद में लौट आया और सियारनी को पूरी घटना सुनाई।
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सियारनी ने उसकी बेवकूफी पर हंसते हुए कहा कि मनुष्यों की बातों में आकर वह मूर्ख बना। सियार ने फिर कभी बस्ती की ओर न जाने का फैसला किया।
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