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एक पहाड़ी के पास हरे-भरे वृक्षों वाला एक उपवन था, जहां एक पोखर में मेंढक रहा करता था। उसे उपवन की हरियाली और रंग-बिरंगे फूल बहुत पसंद थे।
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वर्षा के आगमन से मेंढक बहुत खुश हुआ और उसने उपवन के मालिक गरूड़ महाराज से समारोह आयोजित करने की अनुमति मांगी।
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गरूड़ महाराज ने सभी परिंदों को बुलाकर मेंढक के लिए एक समारोह आयोजित करने का आदेश दिया, ताकि मेंढक अपनी खुशी व्यक्त कर सके।
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समारोह में मेंढक ने गाना शुरू किया, लेकिन वह केवल एक ही राग जानता था, जिससे ज्यादातर पंछी ऊब गए और समारोह छोड़कर चले गए।
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केवल कोयल ही मेंढक के गाने को ध्यानपूर्वक सुनती रही और उसकी प्रशंसा करती रही।
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कोयल ने कहा कि हमें दूसरों के भावों को समझने का प्रयास करना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे हीनभावना का शिकार न हों।
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कोयल के धैर्य और समझदारी से गरूड़ महाराज बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने कोयल को सराहा।
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मेंढक ने कोयल को धन्यवाद दिया और कहा कि जिस तरह कोयल ने उसे सुना, उसी तरह लोग अब कोयल को भी सुनेंगे।
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कहानी का संदेश यह है कि हमें दूसरों की भावनाओं को समझना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसा कि कोयल ने किया।
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