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एक तालाब में कम्बुग्रीव नामक कछुआ रहता था, जहां दो हंस भी आते थे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे, जिससे कछुए और हंसों में गहरी दोस्ती हो गई।
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हंस अपने अनुभवों से कछुए को अनोखी बातें बताते थे, और कछुआ उनसे बहुत प्रभावित था। हंसों की सरलता के कारण कछुए की टोका-टाकी का वे बुरा नहीं मानते थे।
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एक बार तालाब में सूखा पड़ गया और पानी सूखने लगा, जिससे कछुआ संकट में आ गया। हंसों ने उसे बचाने का तरीका निकाला।
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हंसों ने एक लकड़ी लाकर कछुए से कहा कि वह लकड़ी को मुंह से थामे और वे उसे उड़ाकर एक दूसरी झील तक पहुंचा देंगे, जहां पानी की कोई कमी नहीं थी।
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हंसों ने कछुए को चेतावनी दी कि उड़ान के दौरान वह अपना मुंह न खोले, वरना वह गिर जाएगा।
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उड़ान के दौरान, जब वे एक कस्बे के ऊपर से गुजर रहे थे, लोग उन्हें देखकर शोर मचाने लगे। कछुए ने लोगों के देखने पर आश्चर्य से मुंह खोल दिया।
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मुंह खोलते ही कछुआ नीचे गिर पड़ा और उसकी जान चली गई।
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इस कहानी से सीख मिलती है कि बिना वजह ज्यादा बोलना नुकसानदायक हो सकता है,
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इसलिए जितनी जरूरत हो, उतना ही बोलना चाहिए।
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