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सुन्दर वन की एक छोटी पहाड़ी पर दस अलग-अलग प्रकार के पेड़ थे, जिनमें से एक पीपल का पेड़ था। गाँव की नारियाँ पीपल की पूजा करती थीं, जिससे नीम का पेड़ ईर्ष्या करता था।
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नीम सोचता था कि अगर उसके पत्ते भी पीपल की तरह चौड़े और चिकने होते तो उसे भी पूजा जाता।
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वन की परी ने नीम की इच्छा सुनकर उसके पत्ते चौड़े और चिकने कर दिए, लेकिन बकरियाँ उन्हें खा गईं और नीम ठूंठ रह गया।
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निराश नीम ने इच्छा की कि उसके पत्ते शीशे के हों, लेकिन तेज आंधी में वे टूट गए।
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फिर नीम ने सोने के पत्तों की कामना की, लेकिन आने वाले यात्रियों ने उन्हें चुरा लिया।
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अंत में, नीम ने महसूस किया कि उसके अपने पत्ते ही सबसे अच्छे थे, और उसने ईर्ष्या करने का पछतावा किया।
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पीपल ने नीम की समझदारी पर मुस्कुराया, और परी ने नीम के पुराने पत्ते वापस कर दिए।
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परी की मधुर आवाज ने नीम को सिखाया कि दूसरों से ईर्ष्या न करें
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और अपनी विशेषताओं पर संतोष करें।
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