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एक गाँव में रामदास नामक जूते बनाने वाला अपनी पत्नी सीता के साथ रहता था। वह मेहनती था लेकिन बहुत गरीब था और उसकी दुकान के पीछे एक छोटा सा घर था।
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रामदास के पास जूते बनाने के लिए पर्याप्त चमड़ा नहीं था, जिससे उसकी आजीविका मुश्किल हो गई थी। एक दिन, उसके पास केवल एक जोड़ी जूते बनाने लायक चमड़ा बचा था।
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जब वह अगली सुबह उठा, तो उसने देखा कि कोई अदृश्य शक्ति ने उसके लिए एक खूबसूरत जोड़ी जूते बना दिए थे। सीता ने उसे इन जूतों को बेचकर और चमड़ा खरीदने की सलाह दी।
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रामदास ने जूते बेचे और अधिक चमड़ा खरीदा। अगली सुबह, उसने पाया कि दो और जोड़ी जूते तैयार थे। इस तरह, उसकी दुकान चल निकली और वह धीरे-धीरे समृद्ध होने लगा।
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रामदास और सीता ने पता लगाने का फैसला किया कि ये जूते कौन बनाता है। उन्होंने देखा कि रात को छोटी-छोटी परियाँ आकर जूते बनाती थीं।
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परियों की मदद से रामदास और सीता की जिंदगी बदल गई। उन्होंने परियों का शुक्रिया अदा करने के लिए उनके लिए छोटे-छोटे कपड़े और जूते बनाए।
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परियाँ उन कपड़ों और जूतों को देखकर बहुत खुश हुईं और उन्होंने उन्हें पहनकर नाच-गाना किया। इसके बाद परियाँ गायब हो गईं और फिर कभी नहीं आईं।
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रामदास और सीता ने अपनी जिंदगी खुशी-खुशी बिताई और कभी कोई परेशानी नहीं आई। उनकी कहानी गाँव में मशहूर हो गई और बच्चों को प्रेरणा देती रही।
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यह कहानी मेहनत, कृतज्ञता और अच्छे कर्मों के फल का प्रतीक है। बच्चों को यह सिखाती है कि मेहनत और दूसरों की मदद का फल हमेशा अच्छा होता है।
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गाँव के मेले में रामदास ने बच्चों को यह कहानी सुनाई और बच्चों ने परियों का नाटक खेला। इस कहानी को सुनकर बच्चे खुश होते थे और यह कहानी गाँव में प्रसिद्ध हो गई।
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