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एक घने जंगल में चतुर्दंत नामक एक समझदार और शक्तिशाली हाथी के नेतृत्व में हाथियों का झुंड रहता था। चतुर्दंत सभी की समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करता था।
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एक बार भयंकर सूखे के कारण पानी की कमी हो गई, जिससे हाथियों समेत सभी जीवों को प्यास से संघर्ष करना पड़ा। चतुर्दंत को उसके दादाजी द्वारा बताए गए एक भूमिगत जल वाले ताल की याद आई।
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हाथियों का झुंड इस ताल की ओर रवाना हुआ और पांच दिनों की यात्रा के बाद वहां पहुंचा। ताल पानी से भरा हुआ था, जिससे हाथियों ने अपनी प्यास बुझाई।
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ताल के पास रहने वाले खरगोशों की आबादी हाथियों के आगमन से संकट में आ गई, क्योंकि उनके बिल और घर नष्ट हो गए।
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चतुर नामक एक बुद्धिमान खरगोश ने योजना बनाई कि हाथियों को चंद्रदेव के श्राप से डराकर भगाया जाए। उसने लंबकर्ण खरगोश को दूत बनाकर चतुर्दंत के पास भेजा।
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लंबकर्ण ने चतुर्दंत को बताया कि चंद्रदेव खरगोशों की हानि से रुष्ट हैं और हाथियों को वहां से जाने की चेतावनी दी।
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चतुराई से लंबकर्ण ने चतुर्दंत को ताल के पानी में चंद्रमा के प्रतिबिंब को दिखाकर उसे चंद्रदेव का क्रोध बताया, जिससे चतुर्दंत डर गया।
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चतुर्दंत ने अपने झुंड को तुरंत वहां से जाने का आदेश दिया, जिससे खरगोशों को राहत मिली और बाद में वर्षा होने से जल संकट समाप्त हो गया।
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कहानी का मुख्य संदेश यह है कि बुद्धिमत्ता और चतुराई से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है, और एक नेता को समझदार और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
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