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एक समय की बात है, जब एक शांत नदी में पांच-छह लड़के नहा रहे थे और खूब आनंदित होकर धमा चौकड़ी मचा रहे थे।
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अचानक, एक लड़का चिल्लाने लगा कि मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया है, जिससे सभी लड़के चौंक गए।
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बाकी लड़के जल्दी से पानी से बाहर आए और लड़के की मां के पास दौड़े, जो नदी किनारे बैठी थी।
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मां ने यह दुखद बात सुनी और तुरंत अपने बेटे के पास पहुंची, पर मगरमच्छ ने अभी भी उसका पैर नहीं छोड़ा था।
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बेटे ने मां से कहा कि उसे बचाने का एक ही तरीका है कि वह उसे भगवान को अर्पण कर दे।
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मां पुराने ख्याल की थी और भगवान पर अटूट विश्वास रखती थी। उसने जोर से कहा कि वह ऐसा करेगी।
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मां के बोलते ही आश्चर्यजनक रूप से मगरमच्छ ने लड़के का पैर छोड़ दिया और वह सुरक्षित बाहर आ गया।
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यह कहानी भारत के प्रसिद्ध सन्यासी दिग्विजयी शंकराचार्य की है,
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जिन्होंने 32 वर्ष की उम्र में अनेक महान कार्य किए।
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