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बहुत समय पहले, भालू की एक लंबी और चमकदार पूंछ हुआ करती थी, जिस पर उसे बहुत घमंड था। वह हमेशा दूसरों से अपनी पूंछ की तारीफ सुनता रहता था।
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एक सर्दी के मौसम में, जब सब झील और तालाब जम गए थे, भालू को शिकार ढूंढने में परेशानी हुई। तभी उसने लोमड़ी को मछलियों के ढेर के साथ देखा।
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लोमड़ी ने भालू की भूख को भांपते हुए उसे अपनी पूंछ की मदद से मछलियाँ पकड़ने की तरकीब बताई। उसने भालू को बर्फ में गड्ढा बनाने और पूंछ डालकर मछलियाँ पकड़ने को कहा।
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भालू ने लोमड़ी की बात मानकर गड्ढा बनाया और अपनी पूंछ उसमें डाल दी। ठंड के कारण वह वहीं सो गया और उसकी पूंछ बर्फ में जम गई।
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जब भालू जागा और अपनी पूंछ खींचने की कोशिश की, तो उसकी पूंछ टूटकर बर्फ में ही रह गई। वह अपनी सुंदर पूंछ खो बैठा।
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भालू ने लोमड़ी को बहुत बुरा-भला कहा, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसकी पूंछ उसकी मूर्खता और घमंड के कारण ही गई थी।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि सुंदरता पर घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए।
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यह कहानी बच्चों के लिए एक मजेदार और शिक्षाप्रद जंगल कहानी है,
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जो उन्हें सिखाती है कि हमेशा समझदारी से काम लेना चाहिए।
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