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कहानी का शीर्षक "केले का छिलका" है, जिसमें नैतिक शिक्षा दी गई है कि केले खाकर छिलके सड़क पर नहीं फेंकने चाहिए।
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नीटू, जो एक शरारती बच्चा है, हमेशा केले खाकर छिलके सड़क पर फेंकता था, भले ही उसकी मां उसे इसके लिए मना करती थी।
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एक दिन, नीटू के केले के छिलके पर फिसलकर उसके दादाजी गिर जाते हैं, जिससे उन्हें गंभीर चोट लगती है।
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दादाजी की हड्डी टूट जाती है और उन्हें प्लास्टर चढ़ाना पड़ता है, जिसके बाद वे एक महीने तक बिस्तर पर ही रहते हैं।
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इस घटना से नीटू को अपनी गलती का अहसास होता है और वह दादाजी की देखभाल करने लगता है।
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नीटू ने यह सबक सीखा कि उसकी लापरवाही से दूसरों को कितना कष्ट हो सकता है, और उसने छिलके को हमेशा कूड़ेदान में डालने की आदत डाल ली।
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कहानी बच्चों को यह सिखाती है कि छोटी-छोटी लापरवाहियां भी गंभीर परिणाम ला सकती हैं।
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कहानी का उद्देश्य बच्चों में स्वच्छता और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देना है।
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इस नैतिक कहानी के माध्यम से बच्चों को दूसरों की सुरक्षा के प्रति सचेत रहने की प्रेरणा मिलती है।
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